तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहें न रहें

कभी विश्व गुरु रहे भारत की धर्म संस्कृति की पताका, विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये कभी श्रापित हनुमान अपनी शक्तिओं का विस्मरण कर चुके थे, जामवंत जी के स्मरण कराने पर वे राक्षसी शक्तियों को परास्त करते हैंआज अपनी संस्कृति, परम्पराएँ, इतिहास, शक्तियों व क्षमताओं को विस्मृत व कलंकित करते इस समाज को विश्व कल्याणार्थ राह दिखायेगा युग दर्पण सार्थक और सटीक जानकारी का दर्पण तिलक (निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण मीडिया समूह YDMS 09911111611, 9999777358.

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Saturday, May 29, 2010

आस्था की डोर – चैरा

                                                                         मंडी
हमारी यात्रा शुरू होती है मंडी शहर से । व्यास नदी के किनारे स्थित ये मंडी शहर कुल्लू मनाली के रास्ते में ही है। मंडी से हमने अपनी यात्रा टाटा सूमों पर शुरू की। क्योंकि जिस स्थान पर हम जा रहे थे वहां छोटी कार ले जाना संभव नहीं था। यात्रा में जोखिम और कठिनाईयां भी होंगी , इसकी जानकारी हमने तभी हासिल कर ली थी जब हम चैरा घूमने का प्रोग्राम बना रहे थे। यह एक पारिवारिक यात्रा थी और हमारे साथ 4 छोटे बच्चे भी थे जिनकी आयु 5 से 13 तक की थी। सफर शुरू हुआ , धीरे धीरे गंतव्य की ओर कदम बढ़ने लगे । करीब 30 कि.मी. के सफर के बाद बहुत ही सुन्दर गांव आया “चैल चौक” यहाँ पर चील के हरे भरे जंगल दिखे तो शिथिल पड़ी आँखों को तरलता का भान हुआ । वहाँ पर चाय पीकर आगे की यात्रा आरम्भ की । धीरे धीरे गाड़ी उस पहाड़ी रास्ते पर चल रही थी और हमारी आँखें खिड़की से बाहर प्राकृतिक सुन्दरता की गलियों में विचरण कर रही थी । गर्मियों के दिन थे सूरज अपने पूरे सरूर पर था परंतु कहीं पर वृक्ष इतने घने थे कि सूरज की किरणें भी उनसे रास्ता मांगती प्रतीत होती थी । आगे एक के बाद एक ठहराव आते गये जिनमें चुराग,पांगणा,चिंडी आदि प्रमुख हैं । चिन्डी का रेस्ट हाऊस एक ऐसा आराम गृह है जो शरीर के साथ साथ रूह को भी सकून देता है क्योंकि यहां चारों ओर देखने पर नैसर्गिक सुन्दरता नज़र आती है । अब धीरे धीरे गंतव्य से दूरी घटने लगी थी और मंजिल को देखने की चाहत बढ़ने लगी थी क्योंकि अभी तक वो अनदेखा स्थान सिर्फ हमारी कल्पनाओं में था और जैसे कल्पना का पंछी झट से उड़ कर गगन को छू लेना चाहता है वैसे ही हमारा मन भी उस स्थान से जुड़े पहलुओं को जानने के लिये बेचैन था । अंत में हम करसोग पहुँच जाते हैं और वहां पर स्थित ममलेश्वर महादेव और कामाक्षा देवी के दर्शन करते हैं । सच मानो तो यात्रा तो अब शुरु होती है । वहां से 2-3 कि.मी. आगे जाने पर ‘करोल’ नाम का गांव आता है और यहां पर गाड़ी छोड़ कर सारा सामान अपने साथ लेकर हम अपनी पगयात्रा शुरू करते हैं चैरा की ओर । धीरे-धीरे कदम बढ़ने लगते है गंतव्य की ओर , रास्ते के नाम पर सिर्फ 3 फ़ुट की पगडंडी थी कहीं पर सीधी कहीं पर घुमावदार । करीब 2 पहाड़ इसी पगडंडी द्वारा तय करने के बाद एक घर नज़र आने लगता है प्यासे होठों को तरलता का आभास होने लगता है क्योंकि गर्मी के मौसम होने के कारण प्यास अधिक लग रही थी । अब तक हमारे पास साथ में लाया हुआ पानी खत्म हो चुका था । उस घर के लोगों ने हम अपरीचित जनों का खुले दिल से स्वागत किया और पीने को पानी दिया । कुछ देर आराम करके फिर से चलना शुरू किया तो कुछ दूरी तय करने के बाद इस यात्रा का अंतिम आश्रय एक छोटी सी दुकान आई जहाँ पर जरूरत की कुछ चीजें ही उपलब्ध थी । हमने भी अपने सामान को टटोल कर जरूरत की सभी चीजों का जायजा लिया क्योंकि इसके बाद सफर में हमें अपने पास रखी हुई चीजों पर ही निर्भर रहना था । वहां से एक नाले के साथ-2 नीचे चलते – चलते हम “अमला विमला” खड्ड में पहुंच गए । अभी मंजिल तक पहुंचने के लिये इसी खड्ड को हमें 14 बार लांघना था । यहां पर दूरभाष से भी सम्पर्क कट जाता है और रह जाते है सिर्फ हम , प्रकृति के मनभावन नजारे और हमारे विचार जो खुले आसमां के नीचे पहाड़ों की ऊंची ऊंची चोटियों पर किसी बादल की तरह उमड़ते घुमड़ते हुए एक अद्भुत अलौकिक आनंद की ओर ले जाते हैं ।
यहां प्रकृति हर कदम पर बिल्कुल नए रंग दिखा रही थी । कहीं पर पहाड़ बहुत हरे भरे थे तो कहीं पर बस पत्थर की बनावट सी प्रतीत होती थी1उन पहाड़ो में कुछ कन्दराएं थी जो उन लोगों के लिये रहने का ठिकाना थी जो अपने पशुओं,भेड़ बकरियों को चराने के लिये कई दिनों घर से बाहर रहते हैं । इसी जगह पर एक तूफानी चक्रवात ने हमें घेर लिया और हम पत्तों की तरह लहराते हुए गिर पड़े तब यही कन्दराएं हमारा सहारा बनी । कुछ दूरी तय करने पर केले का बागीचा नजर आया क्रमबद्ध अनेक केले के पेड़ । हम इस वक्त तक 3 बार खड्ड पार कर चुके थे और पानी की धारा के साथ-2 सफर करते करते ये पहाड़, ये पानी की हलचल, चट्टाने हमारे साथी बन गए थे अब खड्ड को पार करते हुए डर नही अपितु आनन्द की अनुभूति होने लगी थी ।
यात्रा का हर पहलू रोमांच से भरपूर हो तो अपना ही आनन्द है । ऐसे ही पानी की धारा के साथ साथ सफर चलता रहा बीच में एक नज़ारा अनुपम था । वहां के स्थानीय लोगों द्वारा सिंचाई के लिये पानी को एकत्रित किया गया था और बीच में 1-2 फुट की दूरी पर पत्थर रख कर चलने के लिये रास्ता बनाया गया था । छोटे बच्चों के साथ उस स्थान पर थोड़ी कठिनाई महसूस हुई परंतु जाने क्या था कि ये नन्हे बालक इतने कठिन रास्ते पर भी मस्ती के साथ चल रहे थे शायद ये वो दैवीय शक्ति थी जिसके आगोश में हम जा रहे थे । पानी ठहराव लिये हुए दर्पण की भांति नजर आ रहा था , अपने अन्दर काफी कुछ समेटे बाहर से शांत और अन्दर से उतना व्याकुल । दोनों तरफ के गगनचुम्बी पहाड़ के साये , उस ठहरे पानी में प्रतिबिम्ब बनाए , एक दम उन्नत खड़े थे आकाश की ओर और पानी उनकी विशालता को अपने अन्दर समेटे मौन था ।
हम बस आगे बढ़ते जा रहे थे अभी प्रकृति काफी रहस्यों के उदघाटन करने वाली थी । आगे बढ़ने पर पहाड़ का अनोखा रूप मिला बस मिट्टी की रंगत सी दिखती थी नीचे पानी के बहाव से पहाड़ घिस गए थे और बीच में ऐसे प्रतीत होते थे मानों पत्थरों की चिनाई करके एक दीवार सी बनाई गई हो । एक पल में पहाड़ की टूटन का आभास होता था तो अगले पल पत्थरों के जुड़ाव का । पहाड़ ने ये रूप कैसे पाया ये सोच कर हैरानगी होती है । इंसान अपनी कृति पर कितना ही नाज़ करे परंतु प्रकृति का मुकाबला नहीं कर सकता ।
खड्ड आर पार करने का सिलसिला यूं ही चलता रहा और ऐसे ही रास्ता कटता रहा बहुत सारे स्मरणीय पलों के साथ और मंजिल के अंतिम पडाव के नज़दीक पहुँचने पर देखते हैं कि वहां फिर से केले का बगीचा है ऐसा प्रतीत हुआ मानो वहां भगवान विष्णु का साक्षात वास हो परंतु जब खेतों पर नजर डाली तो वो खाली थे शायद सुविधाओं के अभाव के कारण ऐसा था । अब अंत में जिस खड्ड को हम चट्टानों से पार करते आये थे उसे हमने एक छोटे से पुल से पार किया और पहुँच गए ‘देव माहूँनाग’ के मूल स्थान ‘चैरा’ । जिसके लिये 4 घण्टे की पगयात्रा करके आये थे ।मन्दिर का द्वार बन्द था जो अगले दिन सक्रान्ति को खुलना था । मन्दिर के साथ ही दो कमरे थे जिनका फर्श लकड़ी का था और दिवारें मिट्टी की । ये हमारा रात का आश्रय स्थल था । यह 4-5 घरों का ही गांव था जहां सुविधाओं की बहुत कमी थी फिर भी वहां के लोगों ने हमें कम्बल वगैरा दे दिये । मौसम का मिज़ाज कुछ बदला सा था अब हल्की हल्की बारिश होने लगी थी फिर भी इस जगह पर गर्मी बहुत अधिक थी । हमने साथ में लाया हुआ खाना खाया और सो गए क्योंकि सफर लम्बा था और थकान से भरा भी ।
सुबह उसी खड्ड में मुंह हाथ धोने के बाद देव दर्शन के लिये गए । मन्दिर के अन्दर गए तो देखा कि एक और चान्दी का छोटा सा द्वार है जिस पर साँप निर्मित थे। इस चान्दी के द्वार के आगे लकड़ी के खम्बों पर टिका थड़ा सा बना था जिस पर गोबर से लिपाई की गई थी। पुजारी ने बताया कि इस चान्दी के द्वार के भीतर एक गुफा है जिसमें एक गज जमीन में गाड़ी है 1 जब हमने गज के बारे में पूछा तो उन्होने बताया कि देव “माहूंनाग” और देव “धमूनीनाग” दो देवता इस खड्ड के दोनों ओर रहते थे जब और सभी देवता पहाड़ों के उपर रहने चले गए तो इन दोनों ने निर्णय लिया कि ये अपने मूल स्थान में ही निवास करेंगे । परंतु देव “धमूनीनाग” अपने निर्णय को भूल कर पहाड़ के उपर रहने चले गये तब देव “माहूंनाग” ने ये गज गाड़ कर अपने पहाड़ को उनसे भी ऊंचा कर दिया ।
ये “माहूंनाग” दानी राजा “कर्ण” हैं और कोई भी इनके द्वार से खाली नहीं जाता है ये सबकी खाली झोली भरते हैं । अनेक दम्पती संतान की चाह लिये इनके द्वार पर मन्नत मांगते हैं और चाह पूरी होने पर बकरे की बलि देते हैं । जो कोई भी सच्चे मन से शीश नवाता है उसे उस चांन्दी के दरवाजे से नाग के फुंकारने की आवाज सुनाई देती है । उस दिन एक दम्पति अपनी मन्नत पूरी होने पर बकरे की बलि देने आये थे । पूजा शुरू की गई फिर बकरे को लाया गया तो द्वार खुला । हमने भी उस गज के दर्शन किए तो हमारी कल्पना के दर्पण पर हकीकत की तस्वीर उभर आई । पूजा समाप्त होने के बाद पुजारी ने जिसे स्थानीय भाषा में “गूर” कहा जाता है देव की बातें लोगों तक पहुँचाई । उसके बाद पास में स्थित “हत्या माता” की पूजा की गई हमने अपने जीवन में पहली बार हत्या माता के बारे सुना । उन लोगों के अनुसार हत्या माता की पूजा से आप जीवन में की गई हत्या के दोष से मुक्त हो जाते हैं । फिर मन्दिर के बाहर स्थापित “मसाणू” जी की पूजा की गई जो इन पहाड़ी देवताओं के संगी साथी माने जाते हैं ।
अंत में वहां के लोगों से विदा लेकर हम अपने घर की ओर रवाना हो गए अनेक सवालों से घिरे मन के साथ कि क्या सच में कोई देव आपको संतान दे सकता है ? क्या किसी जीव की जिन्दगी इतनी सस्ती है कि आप अपने लिये उसकी बलि चढ़ा दें ? परंतु सच कहें तो देवालय में बैठ कर कोई प्रश्न नहीं उठता मन में । इंसान शून्य में विलीन हो जाता है , अंतस की गहराई में उतरने लगता है , मात्र कुछ समय के लिये ही सही अपनी सांसारिक दुनिया से दूर हो जाता है । शायद यही वो आस्था की शक्ति है जो आज के इस वैज्ञानिक युग मे भी हम इन संस्कृतियों से जुड़े हैं और बन्धे हैं भक्ति की डोर से ...............कभी विश्व गुरु रहे भारत की धर्म संस्कृति की पताका,विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये!- तिलक

Wednesday, May 26, 2010

स्वप्नों का भारत :

कभी विश्वगुरु रहे भारत की वर्तमान स्थिति क्या है यहतो सर्वविदित ही है! इसे देखने का दृष्टिकोण, हमारी सोच व स्वार्थ/प्रेम सहित संस्कारों से प्रभावित परिणाम भिन्न हो सकते हैं ! प्रेमी युगल हो, भगवद प्रेमी हो या राष्ट्र प्रेमी उसे सपनों में तो बस वही दीखता है जिसे वो चाहता है! उसका प्रेम उसे   सुन्दर रूप भी दिखाता है! आशंका कभी कभी आक्रांत भी करती है! इन्ही के बीच से नए मार्ग भी निकलते हैं! निरंतर प्रयास करते असुर भी विजयी होते हैं, देवता भी विजयी तभी होते है यदि वे सचेत रहें! हम इस तथ्य को स्वीकारें या नहीं ! इतिहास लेखन बदला जा सकता है किन्तु इतिहास नहीं, इतिहास के घटनाक्रम की सही जानकारी  व सदुपयोग अपना मार्ग चयन कर सफलता सुगम करता है! मैकाले व उसकी अवैध वंशावली ने  अंग्रेजों के जाने के बाद भी अग्रेजियत को बनाये रखने व हमारे मार्ग में कांटे बोने के लिए वो शिक्षा पद्धति व इतिहास लिख डाला जिससे हम प्रेरणा नहीं आत्मग्लानी से भर जाएँ! जिसे हम आज़ादी/अपना राज मानते हैं वास्तव में सत्ता में हमारी शक्ल के विदेशी मोहरे ही हैं!  अंग्रेजों व अन्ग्रेज़िअत को ही पुष्ट करनेवाले मैकाले के मोहरे हैं! राष्ट्र पिता को जब पता लगा की  मेरे (देश आजाद कराने वाले दल में) चहुँ ओर देश की जड़ें काटने को तैयार मंडली का वर्चस्व हो  रहा है,तब अपने ही दल को भंग करने का सुझाव दे डाला,भले ही वो माना नहीं गया हो! परिणाम  हमारे समक्ष है! जब कभी सुधार की प्रक्रिया इन पर दबाव बनाने लगती है तो उसे साम्प्रदायिकता  की चिपकी लगा कर जन आन्दोलन को फुस्स करने का मंत्र इन्हें वामपंथियों से मिला मीडिया के   सहयोग से सफल हुआ! देश की आज़ादी के नाम पर सत्ता में आकर देश का खून पीने वाले आम  आदमी के नाम पर सत्ता में आये आम आदमी का खून पीने लगे! इसे समझ कर ही राष्ट्र के शत्रुओं को पहचान सकते हैं तभी हम स्वयं को व राष्ट्र को बचा सकते हैं किन्तु इतना समय किसके पास है!  समय है तो सोच नहीं दोनों हैं उनकी संख्या व आपसी समन्वय नहीं! इसी समस्या का समाधान  खोजने का प्रयास है यह मंच! चोर चोर मोसेरे भाई, एक दूसरे का पाप ढकने लगते हैं;चाहे स्वार्थवश ही सही किन्तु निस्वार्थी को  अपने गुणों का दंभ दूसरे से भिन्न करता है जुड़ने नहीं देता! ऐसे ब्लागर्स को संकलक /एग्रेगेटर -देशकीमिटटी से जोड़ने का प्रयास पहले से ही चल रहा है!  
स्वप्नों का भारत : मेरे स्वप्नों का भारत - हम सबके स्वप्नों का भारत! आओ मिलकर उसे बनायें!
1) वह कैसा है और उसका प्रारूप क्या है!
2) वह ऐसा श्रेष्ठ होने पर भी 1000 वर्ष अंधकार में क्यों भटकता रहा?
3) इस दिशा में क्या अन्य प्रयास भी हैं,परिणाम ?
4) उपरोक्त क्रम 2 व 3 को दोषमुक्त कर क्रम 1 को पूरा कैसे किया जायेगा?
सफलता का विश्वास : मेरे जीवन भर की तपस्या का अनुभव,अथक अनंत संघर्ष, आपका  सहयोग व माँ भारती के प्रति हम सब का प्रेम यह सब कसोटी पर खरे उतरें तो सफलता को तो  आना ही होगा !कभी विश्वगुरु रहे भारत की धर्म संस्कृति की पताका, विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये!- तिलक            विस्तार से जानिए: तिलक संपादक युगदर्पण  09911111611, SvapnonKaBharat@Hotmail.com  myspace- SvapnonKaBharat.spaces.live.com/
yugdarpanh@gmail.com, DeshKiMitti.FeedCluster.Com व ब्लागस्पाट.कॉम पर 25 ब्लाग की शृंखला MyBlogLog              एक नया मंच SvapnonKaBharat.spaces.live.com/?lc=16393
भारत माँ के सपूतों का अपना मंच, केवल सत्ता परिवर्तन का मार्ग तो जेपी आन्दोलन से मिल गया! हमें उपरोक्त को ध्यान में रखते जो मैकाले ने किया उसका अमूल चूल परिवर्तन जो अनुकूल हो  केवल उसे स्वीकारें! हम अपने लिए स्वार्थी न बनें किन्तु राष्ट्र व समाज के लिए महास्वार्थी  बनें, अपने देश व समाज का हित में कभी नहीं त्याग सकता! मैंने तो मैकाले की इस बात को  पकड़ा है, उसकी शिक्षा को नहीं!  Join us to Bring VishvaGuru Back on Track.

Monday, May 17, 2010

युगदर्पण कभी विश्व गुरु रहे भारत की धर्म संस्कृति की पताका,विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये!- तिलक

Tuesday, May 4, 2010

असफल हुआ, हिन्‍दू धर्माचार्य को बदनाम करने का कुचक्र

-मयंक चतुर्वेदी
चित्रकूट तुलसी पीठ के पीठाधीश्वर एवं विकलांग विश्वविद्यालय के कुलाधिपति जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य को हिन्दू विरोधी शक्तियों द्वारा विवादित और बदनाम करने की साजिश का आखिरकार खुलासा हो गया। उनके बारे में यह भ्रम फैलाया जा रहा था कि वह संत तुलसीदास की कृति रामचरित मानस को अशुद्धियों से भरा मानते हैं और उसमें उन्होंने ३०० से अधिक  गलतियां ढूढ निकाली हैं। समाचार पत्रों में यह विवादास्पद समाचार प्रकाशित होने के बाद से हिन्दू समाज में लगातार उनके विरुध्द जन आक्रोश भडक रहा था, जिसका कि आखिरकार पटाक्षेप अखिल भारतीय अखाडा परिषद अयोध्या के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास के सार्वजनिक वक्तव्य आने के बाद हो गया।
     गौरतलब है कि यह 24 अप्रैल को एक समाचार एजेंसी द्वारा यह समाचार प्रमुखता से प्रसारित किया गया था कि जगतगुरू रामभद्राचार्य पर अखिल भारतीय अखाडा परिषद ने तुलसीदास कृत रामचरित मानस में गलतियां ढूढने के बाद उन पर 7 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है, वहीं रामभद्राचार्य ने स्वयं को संशोधित रामचरितमानस की सभी प्रतियों को महंत ज्ञानदास के निर्वाणी अखाडे को सौंप दिया है। आचार्य ने अपनी गलती मानते हुए सजा स्वीकार्य करने के साथ जुर्माना अदा कर दिया है। इसके अलावा रामभद्राचार्य ने खुद यह बात स्वीकार्य की है कि उनसे भारी भूल हो गई। उन्हें रामचरित मानस में गलतियां नहीं निकालनी थी। ज्ञातव्य हो कि इस खबर के आने के बाद से पिछले तीन दिनों से घटनाक्रम तेजी से बदला और संत तुलसीदास के प्रति आदरभाव रखने वाले रामभद्राचार्य के विरुध्दा मुहिम चलाने लगे थे। आखिरकार स्थिति को भांपते हुए अखिल भारतीय अखाडा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास सामने आ गए हैं। ”हिन्दुस्थान समाचार” से दूरभाष पर बातचीत के दौरान उन्होंने रामभद्राचार्य की संशोधित रामचरित मानस की गलतियों से संबंधित सभी बातों को सिरे से खारिज कर दिया। उनका कहना था कि जगद्गुरू रामभद्राचार्य के प्रति उनके अंदर सम्मानजनक भाव है। कहीं कोई विवाद नहीं। समाचार एजेंसी से जो समाचार प्रेषित हुआ तथा बाद में वह कई समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ वह मिथ्या है। उसमें कोई सच्चाई नहीं। उन्होंने स्वामी रामभद्राचार्य को सर्वसम्मति से लिए गए अखाडा परिषद के निर्णय में निर्विवाद ठहराया है।
     महंत ज्ञानदास का कहना है कि स्वामी रामभद्राचार्य से रामचरित मानस को लेकर अखिल भारतीय अखाडा परिषद का कोई विवाद नहीं है। उन पर परिषद ने किसी प्रकार का जुर्माना नहीं लगाया। यह किसी षडयंत्रकारी की खुरापात है तथा हिन्दू धर्माचार्यों को बदनाम करने की साजिश है। स्वामी रामभद्राचार्य हमारे निर्विवाद जगदगुरू हैं, थे और रहेंगे। महंत ज्ञानदास ने यह भी बताया कि अखिल भारतीय अखाडा परिषद ने हरिद्वार महाकुंभ के दौरान चार जगद्गुरु घोषित किए हैं, जिनमें चित्रकूट, तुलसी पीठ पर स्वामी रामभद्राचार्य-पूर्व, स्वामी रामाचार्य-पश्चिम, हंस देवाचार्य-उत्तर तथा नरेंद्रचार्य को दक्षिण पीठ का सर्वसम्मति से पीठाधीश्वर बनाया गया है।
     इस सम्बन्ध में तुलसीपीठाधीश्वर रामभद्राचार्य ने उत्पन्न विवाद पर खेद जताया है। उनका कहना है कि वे निर्विवाद जगदगुरू हैं, जगदगुरू पर कोई जुर्माना नहीं लगाया जा सकता। जो मेरी प्रतिभा को सहन नहीं कर पा रहे हैं वे लोग इस प्रकार का षड्यंत्र रच हिन्दू संतों को अपमानित करने का कार्य कर रहे हैं। मैंने मूल रामचरित मानस का एक भी अक्षर संशोधित नहीं किया, सिर्फ संपादन किया है। उन्होंने कहा कि सम्यक प्रस्तुति को संपादन कहते हैं और इसे स्वयं तुलसीदास ने रामचरित मानस के उत्तर काण्ड दोहा 130 में व्यक्त किया है। अभी तक रामचरित मानस के अनेक संपादक हो चुके हैं, किसी पर ऐसी आपत्ति नहीं की गई, जिस तरह मेरे संपादन किए जाने पर उभर कर सामने आईं हैं। उनका रामचरितमानस पर कोई विवाद नहीं। स्वामी भद्राचार्य का कहना है कि अखाडा परिषद् के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास उनके परम मित्र हैं, वे अनेक बार इस बात का खंडन कर चुके हैं कि मुझे लेकर कहीं भी कोई विवाद शेष नहीं है।
     अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, त्राण से मुक्ति के शस्त्र के रूप में समाज के काम आये या न आये; किन्तु प्रकाश के लिए जलाये दीपक से घर को जलाने को प्रशिक्षित एवम प्रतीक्षित राष्ट्र के शत्रु (वामपंथी) इनका उपयोग भली भांति जानते भी हैं व कर भी रहे हैं!  इसका उपयोग समाज हित में हो व राष्ट्र के शत्रुओं पर अंकुश भी लगे हमें यह दोहरा दायित्व निभाना है! कभी विश्व गुरु रहे भारत की धर्म संस्कृति की पताका,विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये!... जय भारत      --तिलक